१३नवम्बर ९७ की गुनगुनी सी दोपहर निश्चय ही शुभ थी जब महिलाओं की रचनात्मक उर्जा को एक नईदिशा ,नए आयाम देने के उद्देश्य से इंदौर जैसे महानगर मे अनेकों किटी पार्टियों वाले क्लबों एवं सामाजिक संस्थाओं से अलग एक सृजनात्मक अभिरुचि की संस्था के रूप मे इंदौर लेखिका संघ की नींव रखी .आज लगभग १३साल से यह संस्था निरंतर संचालित होरही है .संघ की उपलब्धियों में सबसे अहम् यह की वे जो केवल लिखने की इच्छा करती थी वे भी इसके बेनर तले आज जम कर लिख रही है .पत्र -पत्रिकाओं मे स्थापित लेखन कर रही है ।







आज जब साहित्य हाशिये पर जा रहा है .इलेक्ट्रोनिक मिडिया के
बड़ते प्रभाव मे जब आम आदमी की साहित्य मे रूचि कम होने का खतरा बना हुआ है ऐसे संक्रमण काल मे साहित्य मे रूचि जगाने कही उद्देश्य लेकर चले थे सबके सहयोग ,सगठनं की भावना ही सफलता के मूल मंत्र मेरची बसी है .इस दृष्टी से लेखिका संघ समृध है यही हमारे उद्देश्य की सार्थकता भी है --------------------------स्वाति तिवारी







संस्थापक ,इन्दोर लेखिका संघ







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रविवार, 12 मई 2019

मां प्यारी ,मदर्स डे पर

एँमाँ के लिए इमेज परिणाम
मां
तारों की छइयां बन
लोरी गा
शिशु को सुलाती हो
शीतल  छांह बन
दुलराती हो
जीवन पथ के
संग्राम से
जूझना  सिखाती हो
सहृदयता का पाठ पढ़ा
जीवन का
दीप स्तम्भ  बन
जाती हो
मां तुम 
हर पल हर क्षण
याद  आती  ही हो
हर सांसों में
तुम  रहती हो
रहती हो
श्रीमती वन्दिता श्रीवास्तव 
मांप्यारी
माँ 🌸🥰🌸
***********माँ के लिए इमेज परिणाम
माॅ तुम धरती हो आकाश हो
मेरे जीवन की मधुमास हो
जिन्दा हूॅ क्योंकि दिल धड़कता है
मेरे हर धड़कन की श्वास हो।
गीली मिट्टी को आकार दे
जो चाहे गढ़ लेती हो
बिना पढ़ी पर मन के
भावों को पढ़ लेती हो
सूत्रधार बन रिश्तों मेंमिठास भर
पतझर खुद सहकर बहार देती हो
युगों  युगों से सृष्टि का इतिहास हो
मेरे जीवन की मधुमास हो।
मर्यादा की चादर ओढे फर्ज निभाती हो
चुनौतियों को स्वीकार कर
आगे बढ़ती जाती हो
पन्ना धाय बन राजधर्म निभाती हो
प्रेम परीक्षा देने विष का प्याला भी पी जाती हो
तुम मेरे दुख सुख का एहसास हो
मेरे जीवन की मधुमास हो।
तेरे चरणों में जन्नत चारों धाम है
रंगीन हैं सपने सुहानी शाम है
तेरे ऑचल में सारा संसार है
माॅ शब्द में पूरा ब्रम्हाण्ड है
दूर होकर भी तुम मेरे पास हो
मेरै जीवन की मधुमास हो।
श्रीमती शोभारानी तिवारी
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नानी मां का गांव

नानी मां के आंगन में थी,
 केसर आम की छांव ।
अमरेली की अमराई में ,
याद आ गए गांव ।।
चित्र में ये शामिल हो सकता है: 5 लोग, Ritupriya Khare सहित
छूंदा गोल केरी अचार ,
बहू बेटियां बनाती ।
हलदी नोन राई मसाले ,
बरनी बरनी भराती ।।

खट्टे मीठे आम पापड़ ,
खटिया पर सुखाती ।
 ग्रीष्म उत्सव  त्यौहार सब ,
हिल मिल सखी  मनाती ।।
नन्हे-मुन्ने नाती पोते,
 अंगना करते अठखेली ।
नानी का अंगना सजता था,
 बहू बेटी सखी सहेली।।
 तोता मैना और गौरैया,
 फुदके  नानी अंगना ।
दाना पानी चुगने जाते,
 तरुवर अम्बर  गगना।।
आम्र वॄक्ष की सघन छांव सा,
 नानी का था प्यार ।
आम अचार एक माध्यम् ,
बनता ग्रीष्म त्यौहार।।
ऋतु प्रिया खरे
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मां
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धनुषाकार पिरामिड

मां
पूजा
ममता
है करुणा
ईश्वर रचना
संस्कार ऊर्जा
कोई नहीं तुम सा
शब्दों समाई भाषा
देवी रूप बसा
प्रीति संचिता
मां आनंदा
अमृता
माता
है

रे
मैया
चरण
छुएं सदा
देती दुआएं
अनंत सदाएं
नाप दे आसमान
तीरथ भागीरथ
विशाल आकाश
हाथ आशीष
लगे न्यारी
है प्यारी
मेरी
मां
डां अंजुल कंसल"कनुप्रिया"
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माँ स्त्रीलिंग नहीं पुल्लिंग भी होती है 
क्योंकि देखा है मैने पिता को मां
बनते हुये
जन्म देकर बहन नवजात
व तीन बरस की थी ,मैं..
ईश्वर को प्यारी हो गई जननि
माँ बोलना कभी आया नहीं रहापिता का साया ही
मां की कल्पना भी न की
देखा है पिता को माँ बनते
बच्चों को पालते पोसते
सारी शि़क्षायें माँ बनकर दी
जो बताना नामुमकिन था
वो क़रीबी महिला रिश्तों से दिलवाई
जो चोट हमें लगती वो दर्द उन्हें हुआ
लोरी गाकर सुलाने का उपक्रम भी किया
दिन में धनोपार्जन तो
शाम घर पर बच्चों पर ध्यानाकर्ष भी किया
हमारे लिये जिये हमारे लिये रहे
पुनर्विवाह  भी नहीं किया
नारी की हर कला में पारंगत किया
पुरुषोचित कार्यों का परिचय भी दिया 
एेसे थे मेरे पिता
माँ का फ़र्ज़ अदा किया
तो बताओ कैसे न कंहूं कि पिता
माँ भी बन जाता है कभी कभी
माँ की याद नहीं आई कभी ...
पुल्लिंग माताओं कोभी मेरा नमन🙏🙏
कुसुम सोगानी
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मेरी हृदय स्थली में

कौन कहता है मां नहीं है
वह आज भी मेरे पास है
मेरी देह के पोर पोर में
सांसो की मद्धिम ध्वनि में
मेरी रक्तिम धमनियों में
टूटते हौसलों की घड़ी में
सफलता की रंगस्थली में
भय आतंक की गली में
नेह और प्यार की फुलझडी में
ईश्वर की मार्ग स्थली में
वह आज भी मेरे पास है
मेरी हृदयस्थली में
          'अवनि'
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मेरी मन:स्थिति

माँ हों न हों
होने का आभास ही होता
मानो आशीषों का आंचल
माथे पर लहराता रहता।
****
प्रश्न यही है मन में,
जैसे माँ बस  गई है हम में
क्या हम भी बस पाएंगे
अपने बच्चों के मन में?
मंजुला भूतड़ा 
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रोटियां सेंकती 
मेरी माँ

रसोई में चूल्हे पर
रोटियां सेंकती
मेरी माँ का
लाल लाल
दमकता चेहरा
मुझे साहस मेहनत
विश्वास देता है

अंधेरों में
टिमटिमाती ढिबरियों में
मेरी माँ की
चमकती दो आंखे
टपरियो में आने वाले
तूफानों के
आघात व्यवघात से
भय मुक्त होने का
मुझे आश्वासन देते हैं ।

कुत्ते भौंकते है
बिल्लियां लड़ती है
ताले टूटते है
चीखें हवाओं में तैरती है
नदियां लाल होती है
आकाश फटता है
धरती रोती है
मेरी माँ के चौकन्ने कान
हरदम मुझे चौकस
कर देते है

ह्रदय के अंतः स्थल पर
मेरे बचपन के डर को
जब वह कस कर दबोच लेती है
स्नेह का बहता अमृत
एक पुष्ट होता संस्कार
मुझे चमकते भविष्य का
आभास देता है

परिवार के किनारों को
सुघड़ता से संवारते
मेरी माँ के सधे हुवे ठोस हाथ
उसकी कसी हुई मुट्ठियाँ
उत्ताल तरंगों में
कुछ न कुछ
करने की तमन्ना
मुझे
विराट सत्य से स्थापित होने के
तादात्म्य को
सायास
ऊर्जा किरणों का
समास देती है
    डॉ सीमा शाहजी
    थांदला जिला झाबुआ==============